आचार्य ( गुरुदेव ) ने गुरुकुल में अपने शिष्यों कि परीक्षा लेने का सोचा और सभी शिष्यों को परीक्षा के लिए निर्देश दिए।
गुरुदेव ने कहा कि आज आपका गुरुकुल में अंतिम दिन है और मै आपकी एक परीक्षा लेना चाहता हूं, जो विद्यार्थी इस परीक्षा में सफल होगा वो मेरा प्रिय विद्यार्थी बनेगा।
गुरुदेव ने कहा कि सामने बह रही नदी में से आपको जल लेकर आना है और गुरुकुल कि सफाई करना है, लेकिन सभी विद्यार्थी अचंभित थे की इसमें परीक्षा कैसी !
तब गुरुदेव ने कहा कि नदी का पानी आपको किसी पात्र में भरकर नहीं लाना है, बल्कि एक बांस कि टोकरी में भर कर लाना है। सभी विद्यार्थी यह सुनकर दंग रह गए।
फिर भी सभी ने गुरुदेव कि आज्ञा का पालन किया और अपनी बांस की टोकरी में नदी का पानी भरना प्रारंभ किया लेकिन सभी को असफलता हाथ लग रही थी
थक हार कर, संध्याकाल में सभी शिष्य गुरुदेव के पास पहुंचे और कहने लगे की गुरुदेव ! ये कैसी परीक्षा ले रहे है आप, क्योंकि बांस कि टोकरी में पानी टिकता ही नहीं है।
गुरुदेव ने ध्यान से देखा तो अभी भी एक शिष्य पानी भरने में लगा हुआ था और अंततः वह शिष्य गुरु के पास बांस कि टोकरी में पानी लेकर पहुंच गया।
सारे शिष्यगण आश्चर्यचकित थे की आखिर तुमने इस असम्भव सा प्रतीत होने वाला कार्य कैसे किया ?
तब उस शिष्य ने कहा कि इस परीक्षा में मुझे भी निरंतर असफलता हाथ लग रही थी किन्तु गुरुदेव ने यह कार्य सौंपा है तो कुछ तो कुछ तो बात होगी।
मैंने अपना कार्य निरंतर जारी रखा और अंत में बांस की टोकरी पानी से फूल गई और मैं उस टोकरी में नदी का पानी भरने में सफल हुआ।
यह सुन गुरुदेव ने कहा.. अतीउत्तम ! आखिर तुमने यह कार्य किया और परीक्षा में सफल हुए और आज से तुम मेरे प्रिय विद्यार्थी हुए।
कठिन परिश्रम और निरंतर प्रयास करने वाले को अंततः सफलता जरूर मिलती है।
ऐसी ही ओर प्रेरणादायक कहानी पढ़ने के लिए निचे बटन पर Click करे