संकल्प की शक्ति
एक बार की बात है। रामगढ़ नाम का एक गांव होता है जहाँ के रहवासी खेती कर के अपना गुजर बसर करते थे। लेकिन पिछले कई सालो से वंहा वर्षा नहीं हो रही थी। पुरे गांव में सूखा छाया हुआ था।
जीव-जंतु मर रहे थे। पानी के सारे स्त्रोत जैसे कुआ, तालाब, और जलाशय सभी सूखे पड़ गए थे। ज्यादातर रहवासी अपना गांव रामगढ छोड़कर जा रहे थे।
वही उसी गांव में मोहन नाम का एक किसान रहता और वो भी इस सूखे की समस्या से काफी प्रभावित था। सूखे के कारण उसकी भी एक गाय मर गई थी और 3 बीघा खेत नष्ठ हो गया था।
उसी गांव के उत्तर दिशा में एक विशालकाय पर्वत था जिसे पार करना सबके लिए असंभव था. सभी गांव वाले कहते थे की यही पर्वत जिम्मेदार है हम सभी गांव वालो की दुर्दशा का क्योकि यही पर्वत मानसून को हमारे गांव में प्रवेश नहीं करने देता है , इसी के कारण हमारे गांव में वर्षा नहीं होती है।
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जब यह बात मोहन किसान ने सुनी तो वह उस विशालकाय पर्वत पर बड़ा क्रोधित हुआ। उसने अपनी बात सारे गांव वालो के सामने राखी की हमें इस गांव को छोडने की जरुरत नहीं है। जरुरत है तो इस पर्वत को हटाने की। क्यों ना हम इस पर्वत को काट कर हटा दे।
जब यह बात गांव वालो ने सुनी तो वे उस किसान का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे की “इस पर्वत को काटना हम गांव वालो के बस की बात नहीं है, व्यर्थ की बाते ना करो और चलो इस गांव को छोड़कर चलते है ”
लेकिन वह किसान टस का मस नहीं हुआ और उसने यह दृढ़ निश्चय किया की अब तो कुछ भी हो जाए , मैं इस पर्वत को काट कर ही दम लूंगा , चाहे मेरी जान ही क्यों न निकल जाए , चाहे मेरा कोई साथ दे या ना दे मैं तो इस पर्वत को हटा के ही मानूंगा।
अब क्या था वह किसान लग गया पर्वत काटने , सभी लोग उसको हैरत की दृष्टि से देखते थे , कई लोग तो उसका मजाक भी उड़ाते थे। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
जब पर्वत ने यह देखा की एक मानव मुझे रोज काटने की कोशिश कर रहा है तब वह पर्वत उस किसान से कहता है की “हे मूरख, तू नादान है जो मुझे काटने की कोशिश कर रहा है। क्या तुझे ये नहीं पता की में विशालकाय हूँ , मुझे कोई भेद नहीं सकता है। अरे मूरख जा यंहा से , कोई और काम कर। यंहा अपना समय व्यर्थ न कर।
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लेकिन किसान ने पर्वत की एक ना सुनी और पर्वत को काटता रहा। समय बीतता गया, लोग अपना गांव छोड़कर जाने लगे , लेकिन किसान ने अपना संयम ना छोड़ा।
अब तो पर्वत भी थोड़ा चिंतित होने लगा था। पर्वत ने भगवान् ब्रह्मा का स्मरण किया और ब्रह्मा प्रकट हुए ,
पर्वत ने कहा की “है प्रभु, मुझे बचाये ये कोन हटी व्यक्ति है जो मेरा वजूद मिटने को इतना उत्सुक है , मैंने इसका क्या बिगाड़ा है, प्रभु अब आप ही मुझे बचा सकते है।”
यह सुन कर ब्रह्मा जी बोले की
“हे पर्वत , तुमने ही इन गांव वालो की रोजी रोटी छीनी है , तुम्हारी ही वजह से इस गांव में अकाल, भुखमरी और सूखा पढ़ा हुआ है , तुम्हारी वजह से ही कई गांव वालो ने अपना सब कुछ खो दिया और गांव छोड़कर चले गए, अब रही बात तुम्हे बचाने की तो मैं स्वयं ब्रह्मा जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया मैं भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता
क्योकि मनुष्य की इक्छा शक्ति के आगे तो बड़े से बड़ा भगवान् भी हार मान जाता है,
मनुष्य में ही वो शक्ति है जो स्वर्ग में बहने वाली गंगा नदी को भी धरती पर उतरना पड़ा,
तो मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता हूँ ”
और अंत में मनुष्य के संकल्प की शक्ति जीत जाती है और पर्वत की हार होती है , देखते ही देखते पर्वत का नामु-निशान मिट जाता है।
जब अगला सावन का महीना आया तो गांव में चारो तरफ झूम के वर्षा हुई जो उस विशालकाय पर्वत की वजह से रुक रही थी , धीरे-धीरे उस गांव की खुशहाली लौट आयी और सरे गांव वाले भी अपने गांव घर लौट आये , चारो तरफ बस हरियाली ही हरियाली नज़र आ रही थी और उस गांव का नाम रामगढ़ से हटा कर उस किसान के नाम पर (मोहन-नगर) रख दिया गया।
यही थी उस किसान के संकल्प और दृण निश्चय की कहानी।
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