होली का त्यौहार:
HOLI (होली) त्यौहार को भूरे भारत वर्ष में धूम धाम से मनाया जाता है और केवल भारत देश में ही होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है वरन अब तो विदेशो में भी इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इसे हम सभी रंगो के त्यौहार के रूप में मनाते है लेकिन इस त्यौहार को मानाने के पीछे की कथा / कहानी काफी रौचक है।
तो चलिए जानते है हम क्या है वो कथा …
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“बहुत समय पहले की बात है , प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का राजा (असुर) रहता था जो की बहुत ही कठोर और स्वाभाव से अहंकारी था। वह सभी देवी देवताओ से घृणा करता था और खास कर विष्णु भगवान् ने।

उसने कठोर तप और साधना से ब्रह्मा को प्रसन्न किया और अमर होने का वरदान माँगा पर ब्रह्मा जी ने कहा की वो ऐसा वरदान नहीं दे सकते तो कोई ओर वरदान मांगो
तब हिरण्यकश्यप ने कहा की मुझे ऐसा वरदान दो जिससे मुझे न तो कोई जीव मार सके और न ही कोई जंतु , मुझे ना तो कोई अस्त्र मार सके ना ही कोई शस्त्र, न ही घर के बाहर और ना ही घर के अंदर , न ही सवेरे और ना ही रात को , तब ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह कर हिरण्यकश्यप को ये वरदान दे दिया।
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अब क्या था , हिरण्यकश्यप का प्रकोप और बढ़ता जा रहा था। उसने चारो ओर अपना विध्वंस रूप दिखाया और यहाँ तक की इन्द्र आसान पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। सभी देवी देवता और मनुष्य गण उसके इस व्यवहार से परेशान थे।

तब हिरण्यकश्यप के घर एक संतान का जनम हुआ और उसका नाम रखा गया – प्रह्लाद। सभी लोग प्रसन्न थे।
लेकिन जहाँ हिरण्यकश्यप के राज में किसी देवी देवता की स्तुति करना सख्त मन था वहीं प्रह्लाद भगवान् विष्णु की उपासना करता रहता था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।
जब इस बात का पता हिरण्यकश्यप को चला तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने कई बार प्रह्लाद को मारने की कोशिश की, कई बार सर्प के बिच में छोड़ दिया जाता, तो कई बार पहाड़ के ऊपर से फेंक दिया जाता तो कई बार कुंवे के अंदर धकेल दिया जाता लेकिन भगवान् विष्णु के इस भक्त का कोई कुछ नहीं बिगड़ पाता ।
जब इस बात का पता हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को हुआ तब होलिका ने भाई हिरण्यकश्यप को एक युक्ति सुझाई।
होलिका को भी एक वरदान प्राप्त था और वह वरदान था की उसे अग्नि कभी स्पर्श नहीं कर पाएगी यानी अग्नि उसे नहीं जला पाएगी। इस बात का फायदा उठा कर उन्होंने प्रह्लाद को मारने की तरकीब निकाली..
भुआ होलिका भतीजे प्रह्लाद को अपनी गोदी में बिठा कर अग्नि में प्रवेश कर गई और प्रह्लाद ने भगवान् विष्णु नाम का जप प्रारम्भ कर दिया और इसका परिणाम यह हुआ की प्रह्लाद को अग्नि से कोई नुक्सान नहीं हुआ जबकि होलिका जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था वो वही जल कर ख़ाक हो गई।
इसी ख़ुशी में तभी से होली (HOLI FESTIVAL) का त्यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाने लगा।
इस बात से क्रोधित होकर पिता हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रह्लाद को एक खम्बेनुमा आकृति के सहारे एक जंजीर से बाँध दिया और पूछने लगे की बता तेरा भगवान् कहा है। तब प्रह्लाद ने कहा की भगवान् विष्णु तो हर जगह है , कण कण में विद्यमान है।
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आगबबूला होकर हिरण्यकश्यप ने पूछा की क्या तेरा भगवान् इस खम्बे में भी बसा है तब प्रह्लाद ने कहा – हाँ , भगवन तो इस खम्बे में भी बसे है।
तब गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने उस खम्बे को तोड़ दिया और देखा तो सच में उस खम्बे में कोई था।
और वो थे भगवान् विष्णु जो की नरसिंघ अवतार में सबके सामने आये।
नरसिंघ अवतार ने हिरण्यकश्यप को जोर से अपनी जकड में लिया (ना तो सवेरे और ना ही संध्या काल में ) और उसको घर की डेरी (न तो घर के अंदर और न ही घर के बहार) में ले जाकर अपने नाखुनो से (न तो अस्त्र और न ही शस्त्र ) उसके पेट को चीर दिया। इस तरह से हिरण्यकश्यप का वध हुआ।
यह थी HOLI मनाने की वजह यानी होली कथा / होली कहानी .
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चलिए तो फिर मिलते है फिरसे एक नई पोस्ट में तब के लिए आप अपना और अपने परिवार का ध्यान रखे।
आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाए।
धन्यवाद।
Note:- This Article is in Hindi language and I tried my best to Research and Write this Article. If you find any Grammatical Mistake then please keep calm and keep support.